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'महाराज ! मैंने जो निर्णय किया है वह स्थिर चित्त से किया है, चंचलता में नहीं ।'
सभी देखते रहे। स्थूलभद्र वहां से चला गया।
सम्राट् ने पुरोहित से कहा- 'महात्मन् ! मंत्री - मुद्रा श्रीयक को अर्पित करो। महात्मा कल्पक का गौरव श्रीयक से दीप्त होगा ।'
राजपुरोहित ने श्रीयक को महामन्त्री पद पर विधिपूर्वक विभूषित किया ।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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