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________________ समृद्धि की है। किन्तु मैं इस महान उत्तरदायित्व को लेने के योग्य नहीं हूं। श्रीयक इसके योग्य हैं।' 'स्थूलभद्र ! तेरी योग्यता का विश्वास प्रत्येक सभासद को है।' 'महाराज! मुझे इसमें विश्वास नहीं है।' 'क्यों?' 'महाराज! क्षमा करें!' स्थूलभद्र ने विनयपूर्वक कहा। इस कथन से सारी राजसभा स्तब्ध रह गई। सम्राट भी आश्चर्य से अभिभूत हो गए। जिस पदकी प्राप्ति के लिए युगों तक तपस्या करनी पड़ती है, उस पद को यह व्यक्ति क्यों ठुकरा रहा है-यह प्रश्न सबके मन को कचोटने लगा। कुछ क्षणों तक नीरवता व्याप्त हो गई। सम्राट् ने कहा- 'स्थूलभद्र ! मैं चाहता हूं कि तू स्वस्थ चित्त से चिन्तन करे। तेरा अन्तिम निर्णय जाने बिना राजसभा विसर्जित नहीं होगी।' 'जैसी आज्ञा।' ऐसा कहकर स्थूलभद्र एकान्त में गया। श्रीयक ने सोचा- 'बड़े भाई को यह क्या हो गया है ? क्या कोशा के विलास-भवन से पल भर के लिए निकलना भी इनको नहीं भाता? क्या कोशा के रूप और लावण्य के लिए ये पिता के चरण-चिह्नों पर चलना नहीं चाहते?' एक घटिका बीत गई। स्थूलभद्र पुन: राजसभा में आया। सम्राट के चेहरे पर आनन्द उभर आया। राजसभा अन्तिम निर्णय सुनने के लिए उत्सुक थी। मगधेश्वर ने स्थूलभद्र के नमस्कार को स्वीकार करते हुए कहा'भाग्यशालिन् ! निर्णय कर लिया।' 'हां, कृपावतार....!' तत्काल सम्राट्ने राजपुरोहित की ओर देखकर कहा- 'मुझे विश्वास था कि स्थूलभद्र गौरव की रक्षा करेगा। आप मन्त्रिमुद्रिका लाएं और स्थूलभद्र को महामन्त्री के पद पर विभूषित करें।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा २१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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