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३६. रात बीत गई
रात के दूसरे प्रहर में स्थूलभद्र अपने निवास स्थान पर आया। कोशा स्वामी की प्रतीक्षा में बैठी थी। परिचारिका ने आकर कहा- 'कुमार शयनगृह में गए हैं।'
कोशा को आश्चर्य हुआ। वह तत्काल शयनगृह में गई। स्थूलभद्र एक आसन पर चिन्तामग्न होकर बैठा था। कोशा ने स्वामी के आनन को देखा। आनन अत्यन्त उदासीन था। उल्लास और आनन्द मिट चुका था। क्षण भर स्थूलभद्र की ओर स्थिर दृष्टि से देखकर कोशा बोली'स्वामीनाथ!'
स्थूलभद्र ने कोशा की ओर दृष्टि डाली। कोशा बोली-'आपको बहुत आघात लगा है, ऐसा प्रतीत होता है। आपको अप्रसन्न देखकर मेरा मन भी व्यथित हो रहा है।'
स्थूलभद्र मौन रहा।
कोशा बोली- 'आप विश्राम करें। मैं आपकी चरण-सेवा में बैठी हूं।'
'कोशा ! तू सो जा। मुझे आज नींद नहीं आयेगी।'
'स्वामिन् ! आप स्वयं जानते हैं कि अनिवार्य होने वाली मृत्यु पर इतना शोक करना व्यर्थ है।'
'कोशा! क्या....?' 'आप यदि इस प्रकार शोकमग्न रहेंगे तो मुझे भी नींद नहीं आयेगी।'
'ओह ! चलो, दोनों सो जाएं।' स्थूलभद्र शय्या पर सो गया। कोशा उसके मस्तक को सहलाती हुई बैठी रही। स्थूलभद्र की आंखें नींद से मिची हुई देखकर कोशा भी सो गई। वह निद्राधीन हो गई।
आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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