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________________ _ 'ओह.....!' स्थूलभद्र बेहोश होकर धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। कोशा घबरा गई। दास-दासी दौड़े-दौड़े आए। शीतल उपचार कर स्थूलभद्र को सचेत किया। उसके सचेत होने पर विमलसेन बोला- 'कुमार! बहुत विलम्ब हो चुका है। श्मशानयात्रा निकल चुकी है। आप शीघ्र तैयार हों। हम सीधे श्मशानघाट जाएंगे। सम्राट् स्वयं पैदल चलकर श्मशानघाट आएंगे। उनकी वेदना का पार नहीं है। वे पश्चात्ताप की अग्नि में झुलस रहे हैं। उनकी अवस्था ऐसी है मानो उनका सर्वस्व ही लुट गया हो। श्रीयक ने दिन-रात रो-रोकर आंखें सुजा ली हैं। पिता की कठोर इच्छा की पूर्ति कर श्रीयक ने दु:ख का पहाड़ अपने सिर पर लिया है। आपके बिना उसको सान्त्वना देने वाला कोई नहीं है। आपकी बहिनों का करुण क्रन्दन सुना नहीं जा सकता।' कोशा की आंखों से अविरल अश्रु-प्रवाह बह रहा था। स्थूलभद्र के प्राण अनन्त वेदना को भोग रहे थे। उसने सोचा-पिताजी की मृत्यु....मेरा विलास! पिता का रक्त....मेरी लालसा! पिता का बलिदान...मेरा अध:पतन! स्थूलभद्र श्मशानघाट पर पहुंचा। चिता धू-धू कर जल रही थी। हजारों-हजारों लोग अश्रुभीगे नयनों से महाज्वाला को देख रहे थे। प्रत्येक राजपुरुष मगध के स्वामीभक्त सेवक को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था। मगधपति घननन्द दु:ख से परिपूर्ण आंखों से आकाश की ओर देख रहे थे-इस आशा से कि शकडाल की पवित्र आत्मा उनके जघन्यतम अपराध को क्षमा करने की वर्षा करेगी। स्थूलभद्र एक ओर अकेला बैठा था। चिता की ज्वाला श्मशान में नहीं, उसके प्राणों में प्रज्वलित हो रही थी। गगनचुम्बी ज्वाला मानो स्थूलभद्र से कह रही थी-अरे दुर्भागी पुत्र! रूप और विलास के पीछे अंधे होकर तुमने अपने मार्ग की विस्मृति कर दी है। जनता तुम्हारी ओर अंगुली उठा रही है। तुम्हारे पिता की आत्मा पुकार-पुकारकर कह रही है-जिस पिता आर्य स्थूलभद्र और कोशा २०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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