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________________ इतने में ही चित्रा ने शयनकक्ष के द्वार को खटखटाया। स्थूलभद्र ने पूछा - 'कौन है ?' 'मैं आर्यपुत्र !' चित्रा ने कहा । 'क्यों, क्या बात है ?' 'आपसे ही कुछ सन्देश कहना है। महाप्रतिहार आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।' स्थूलभद्र ने कोशा को जगाया। कोशा बोली- 'मैं भी आपके साथ चलूंगी। कोई-न-कोई महत्त्व का संदेश है, अन्यथा महाप्रतिहार कभी नहीं आते।' थोड़े समय पश्चात् दोनों नीचे उतरे । मध्यखंड में शोकमग्न विमलसेन श्वेत वस्त्र धारण कर एक ओर खड़ा था। स्थूलभद्र और कोशा को देखकर विमलसेन ने नमस्कार करते हुए कहा- 'कुमार ! अत्यन्त दु:खद समाचार देने के लिए मुझे यहां आना पड़ा है। महामात्य शकडाल परलोकवासी हो गए।' 'हैं ! पिताजी ! कब ?' स्थूलभद्र के हृदय पर आघात - सा हुआ । 'आज दूसरे प्रहर में ।' स्थूलभद्र विमलसेन को स्थिर दृष्टि से देखता रह गया। विमलसेन आगे बोला- बहुत दर्दनाक घटना घटी। आज उन्होंने राजसभा में श्रीयक के हाथ से अपना वध कराया ।' स्थूलभद्र के हृदय पर दूसरा वज्रपात हुआ। वह बोला- ' वध.....? श्रीयक के हाथ से...?' 'हां, कुमार! सम्राट् को अन्याय से बचाने के लिए उन्होंने अपना बलिदान किया । सम्राट् को संशय हो गया था कि महामंत्री मेरा नाश कर श्रीयक को राजसिंहासन पर बिठायेगा । सम्राट् ने महामंत्री और उसके समूचे कुटुम्ब का वध करने का निर्णय किया। महामंत्री ने सम्राट् को इस जघन्य पाप से बचाने के लिए तथा कुटुम्ब को बचाने के लिए अपने ही पुत्र के हाथों अपना वध कराया । ' २०१ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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