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________________ ३५. महाज्वाला जिस समय महामंत्री के भव्य बलिदान से राजसभा में हाहाकार मच रहा था, उस समय आर्य स्थूलभद्र अपनी रूपवती प्रियतमा के साथ उद्यान में स्थित यांत्रिक जलाशय में जलक्रीड़ा कर रहा था। मगध की राजसभा में शकडाल का रक्त छितर गया था और यहां यांत्रिक जलाशय में यौवन को अभिनन्दित करने वाली सौम्यगंधा की सुवास महक रही थी । एक ओर वेदना तथा बलिदान की पूजा थी, दूसरी ओर प्रेम तथा विलास की पूजा थी । एक ओर मगध का महापुरुष आदर्श को सुरक्षित रखने के लिए मृत्यु का वरण कर चुका था। दूसरी ओर उसी महापुरुष का पुत्र यौवन की वीणा के संगीत में पागल हो रहा था, एक ओर शकडाल का मस्तक रक्त से लथपथ होकर घननन्द के चरणों में लुढ़क गया था, दूसरी ओर स्थूलभद्र का मस्तक प्रियतमा की सुकुमार देह पर लुढ़क गया था। एक ओर रक्त का उत्सव हो रहा था और दूसरी ओर फूलों का उत्सव | पिता और पुत्र एक-दूसरे से कितने दूर थे यौवन की मादकता से पागल बने हुए दोनों प्रेमी जलाशय से बाहर आए। दोनों अत्यन्त प्रसन्न और आनन्दित थे । दोनों को भूख सता रही थी । चित्रा भोजन-सामग्री ले प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों भोजनगृह में गये । दिन का तीसरा प्रहर बीत गया । शयनकक्ष में स्थूलभद्र और कोशा एक कोमल शय्या पर सो रहे थे। दोनों निद्राधीन थे। कोशा का हाथ स्थूलभद्र की छाती पर पड़ा था। आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only २०० www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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