________________
विधि भी उच्च घोष से पुकार रही थी-शकडाल अमर है...शकडाल अमर है!
मृत्यु का अट्टहास सुनाई दे रहा था-शकडाल नहीं मरा, घननन्द मरा है। महामंत्री की मृत्यु नहीं हुई, नंदवंश की शक्ति का अवसान हुआ है।
हृदय को प्रकंपित करने वाले स्वरों में श्रीयक बोल उठा-'पिताजी! मेरे प्यारे पिताजी ! मेरे बापू!....'
और मगध के मुकुट बिना का मस्तक मानो शाश्वत शांति की गोद में पड़ा-पड़ा खिल रहा हो, ऐसा लग रहा था। वह ऐसा लग रहा था मानो रक्त के सरोवर में श्वेत कमल खिल रहा है।
१६६
आर्यस्थूलभद्र और कोशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org