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________________ पहला कर्त्तव्य है कि मैं उस व्यक्ति का वध कर सम्राट् को निश्चिन्त बना दूं।' रोष भरे स्वरों में सम्राट् ने कहा-'तूने यह कार्य किसकी आज्ञा से किया?' __ 'क्षमा करें, महाराज! पिताश्री की यह इच्छा थी कि अंधे बने हुए सम्राट् की आंखें खोलने के लिए पुत्र के हाथों पिता का वध हो। महामंत्री की आज्ञा थी कि पिता की इच्छा पूरी हो। मैंने उनकी इच्छा पूरी की। जिस महामात्य के कारण सारे संसार में मगध के वर्चस्व का बोलबाला था, उसके प्रति संदिग्ध होकर, उसे तथा उसके पूरे कुटुम्ब का वध कराने की जघन्यता को देख मेरे पिताश्री का दिल दहल उठा। कृपावतार! मेरे पिता इससे अधिक और आपको क्या उपहार दे सकते थे?' श्रीयक आगे बोल नहीं सका। उसका गला रुंध गया। उसकी आंखों से आंसुओं की गंगा बह चली। वह पिता की निर्जीव देह पर गिर पड़ा। राजसभा के प्रत्येक सदस्य की आंखें आंसुओं से छलक उठीं। वक्रनाश, वररुचि और सुकेतु के नयनों में कुछ आनन्द का आभास था। मगध के पवित्र सिंहासन के पास पड़े रक्त में मगध की महाशक्ति की मृत्यु का प्रतिबिम्ब दिख रहा था....नन्द वंश का विनाश उसमें से झांक रहा था। अपने आसन के पास खड़ा महाप्रतिहार विमलसेन इस दृश्य से तिलमिला उठा। वह मूर्च्छित होकर धड़ाम से नीचे गिर गया। ___ महादेवी को मूर्च्छित हुए समय बीत चुका था। मगधेश्वर का हृदय भी धड़क रहा था। भारतवर्ष का यह भव्य बलिदान पुकार-पुकारकर कह रहा था'शकडाल जीवित है....शकडाल जीवित है....शकडाल जीवित है!' आर्य स्थूलभद्र और कोशा १६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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