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श्रीयक मौन खड़ा रहा।
महामंत्री बोला- 'मृत्यु से भी अधिक कष्टदायी यह वेदना होगी कि मैं एक कायर पुत्र का पिता था।'
'पिताजी....!' 'मुझे उत्तर दे।' 'मैं राजसभा में जा रहा हूं।' श्रीयक ने कहा। 'मेरी इच्छा ...?' 'आपकी इच्छा पूरी होगी।' कहकर श्रीयक चला गया।
शकडाल ने आनन्दभरे स्वरों में कहा- 'वत्स! धन्य है तू! महान पिता का महान पुत्र!'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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