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देखा।
'पिताजी ! एक बार आप अपनी इच्छा बताएं, फिर मेरे प्रति आशंका व्यक्त करना।'
वृद्ध पिता खड़े हो गए।
खण्ड में इधर-उधर घूमकर शकडाल ने पुत्र को बार-बार निहारा। उसके तेजस्वी वदन और आशा-भरे नयनों को देखकर शकडाल ने कहा'श्रीयक! राजसभा में कब जाओगे?'
‘एक प्रहर के बाद।' श्रीयक पिताश्री की गम्भीर ध्वनि को सुनकर चौंक उठा।
'सम्राट् के अंगरक्षक के रूप में आज तू उनके पास ही तो खड़ा रहेगा?'- महामन्त्री ने प्रश्न किया।
'हां पिताजी!' 'तेरी तलवार की धार तेज तो है ?' श्रीयक कुछ भी नहीं समझ सका। महामन्त्री ने पुन: प्रश्न किया- 'तेरी तलवार की धार तो तीक्ष्ण
है?'
'हां..... 'एक ही बार से क्या तू धड़ से सिर अलग करने में समर्थ है?' 'हां।' 'हाथ और हृदय तो नहीं कांपेगा?' 'नहीं, कभी नहीं!' '.....आपके प्रश्नों का अभिप्राय नहीं समझ सका।'
'अर्थ अब समझ सकोगे, वत्स! तुम्हारे में आत्मविश्वास कितना है, यह जानना चाहता था, इसलिए ये प्रश्न किए हैं। अब तुम मेरी इच्छा सुन लो। आज मगध का महामंत्री, जिसने मगध के विशाल साम्राज्य को खड़ा किया है, वह राजसभा में आएगा और प्रणाली के अनुसार मगध सम्राट् के चरणों में मस्तक नमाएगा। उस समय तुम्हें कंपित हुए बिना
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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