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________________ महामंत्री का शिरच्छेद कर डालना है, एक ही झटके में धड़ से सिर को अलग कर देना है। यही मेरी अंतिम इच्छा है।' कहकर महामंत्री शकडाल का एक आसन पर बैठ गया। वज्रपात जैसे शब्द सुनकर श्रीयक का कलेजा कांप उठा। वह खड़ा होकर बोला-'पिताजी!.... शकडाल ने शांत स्वर से कहा- 'बेटा! तेरे वृद्ध पिता की इस अंतिम इच्छा को पूरा किए बिना कोई चारा नहीं है। तू इस भयंकर इच्छा के पीछे पल रही वेदना को नहीं जानता, इसीलिए चौंक पड़ा है।' श्रीयक पिताजी के चरणों में लुढ़ककर बोला- 'बापू! बापू! मुझे क्षमा करें।' महामंत्री ने पुत्र की बाहें पकड़कर उसे उठाया और वात्सल्य भरी वाणी में कहा- 'वत्स! मनुष्य अपनी कामनाओं के साथ सदा खेलता रहा है। किन्तु कामनाओं को समाप्त करने का अवसर विरल मनुष्य को ही प्राप्त होता है। मैं तेरे हृदय की व्यथा नहीं समझ सकता, इतना नादान तो नहीं हं। किन्तु यह इच्छा एक निष्ठर पिता की नहीं है....जिस पिता ने मां का दिल संजोकर मातृहीन पुत्रों को पाला-पोसा है....जिसने बालकों के हित के लिए पुन: लग्न नहीं किया....ऐसे कर्त्तव्यपरायण पिता की इच्छा है।' 'पिताजी.....' आंसुओं के प्रबल प्रवाह को न रोक सकने के कारण श्रीयक आगे कुछ भी नहीं बोल सका। 'श्रीयक! मेरी इस इच्छा की पृष्ठभूमि में जो तथ्य हैं, उन्हें तू नहीं जानता।' श्रीयक अश्रुपूर्ण नेत्रों से पिताश्री की ओर देखता रहा।' महामंत्री बोले- 'वत्स! महात्मा कल्पक का वंश सात-सात पीढ़ियों से वंश-गौरव की रक्षा करता रहा है और मगध के सिंहासन की पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रयत्न करना रहा है। आज तू नहीं जानता कि कल्पक वंश के गौरव पर क्या विपत्ति आ रही है। वररुचि के षड्यंत्र से आर्य स्थूलभद्र और कोशा १६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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