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महत्त्वपूर्ण । मैंने बहुत गहराई से चिन्तन किया है। आज क्षत्रिय शस्त्रविमुख हो रहे हैं। उन्हें अपने कर्त्तव्य का बोध हो, यही मेरी भावना है। क्षत्रियों के लिए इससे अच्छा कोई उपकार हो नहीं सकता, ऐसा मैं मानता हूं।'
'महाराज! महाराज!' विमलसेन से आगे नहीं बोला जा सका । वह शकडाल के चरणों में गिर पड़ा।
महामंत्री को कुछ भी समझ में नहीं आया। उन्होंने विमलसेन को हाथ पकड़कर उठाया। वे बोले-'विमल! इतने व्यथित क्यों हो?'
'बहुत बड़ा अनर्थ होने वाला है।' 'अनर्थ ?'
'हां। सम्राट् आपसे विमुख हो गए हैं। आपके शत्रुओं के जाल में वे बुरी तरह से फंस चुके हैं। सम्राट् मानते हैं....'
'क्या?' 'मुझे आप क्षमा करें।'
'विमल! सम्राट् जो कुछ भी मानें, शकडाल अपनी पवित्रता के आधार पर ही जीवित है।
बोलो, सम्राट् क्या मानते हैं ?'
'इन नवनिर्मित शस्त्रों से आप सम्राट् का विनाश करना चाहते हैं और मगध के सिंहासन पर श्रीयक को बिठाना चाहते हैं।'
'सम्राट् वररुचि के श्लोक को सत्य मानते हैं?'
'बात इससे भी आगे बढ़ गई है। अभी-अभी मैं सम्राट् की मंत्रणागोष्ठी से ही आ रहा हूं। मंत्रणा में सुकेतु, सुबाहु और अर्थमंत्री थे। सम्राट् ने निर्णय किया है....'
'बोलो, नि:संकोच भाव से बताओ।' 'निर्णय बहुत भयंकर है, महाराज! मैं किस मुंह से सुनाऊं?' 'शकडाल का नाश कर विपत्ति से बचना-यही निर्णय है क्या ?'
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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