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________________ 'विमल! तुम इतने उदास और चिन्तातुर दिख रहे हो, क्यों?' 'मंत्रीवर्य! एक विशेष कार्य से उपस्थित हुआ हूं।' 'बोलो।' 'एक महत्त्वपूर्ण बात पूछने आया हूं। आप मुझे वचन दें कि आप मुझे सही-सही तथ्य से अवगत कराएंगे।' "विमल! तुम तो मेरे पुत्र के समान हो। आज पिता के प्रति शंका क्यों हो रही है ? शकडाल कभी असत्य का आश्रय नहीं लेता। बोलो, तुम क्या जानना चाहते हो?' ___ 'मंत्रीवर्य! अभी कुछ ही दिनों से एक श्लोक प्रचारित किया गया है। क्या आपको वह ज्ञात है ?' 'हां, श्लोक सुना है और जानता हूं कि यह श्लोक किसने बनाया है। इतना ही नहीं, मैं यह भी जानता हूं कि शकडाल की कीर्ति को धूमिल करने के इस प्रयत्न में किन-किन राजपुरुषों का हाथ है।' 'क्या इस श्लोक की सत्यता कुछ भी नहीं है ?' 'कुछ भी नहीं। किन्तु सम्राट् की चिन्ता का कारण भी वह श्लोक बना है, ऐसा मेरा अनुमान है।' 'फिर आपने सम्राट के समक्ष इसका प्रतिकार क्यों नहीं किया ?' 'विमल! एक बात का विश्वास रखो-असत्य की उम्र लम्बी नहीं होती। सत्य कभी नहीं मरता। जिसको मैंने सम्राट् बनाया, जिसकी कीर्ति फैलाने में मैंने अपना लहू बहाया है, उसका विनाश करने जितनी क्रूरता शकडाल में है, ऐसा मानने वाले दया के पात्र हैं।' विमलसेन विचारमग्न हो गया। महामंत्री ने पूछा-'विमल! यह सब क्यों पूछ रहे हो?' _ 'महाराज! इसका कारण बहुत गहरा है। आप शस्त्रों का निर्माण क्या श्रीयक के विवाह के लिए ही करवा रहे हैं ?' 'विमल ! तुम क्या मानते हो? क्या वृद्धावस्था में मैं इनका प्रयोग करूंगा? विमल! शस्त्रों को उपहार में देना नयी बात है। किन्तु है यह बहुत आर्य स्थूलभद्र और कोशा १८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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