________________
रात्रि का पहला प्रहर। महाप्रतिहार विमलसेन सम्राट् के मंत्रणागृह में गया। सम्राट् प्रतीक्षा कर रहे थे। विमलसेन ने नमस्कार किया।
सम्राट् ने पूछा- 'जांच कर आए?' 'हां, महाराज!' 'क्या जाना?' 'महामंत्री के घर विविध प्रकार के शस्त्र बनाए जा रहे हैं।' 'महामंत्री से मिले या नहीं?' 'मैं उनसे मिला था। उन्होंने ही मुझे सारे शस्त्र दिखलाए थे।' 'उन्होंने कुछ कहा?'
'महामंत्री ने मुझे कहा कि क्षत्रियों के उपहार-योग्य शस्त्र ही होते हैं। दूसरी कोई वस्तु उनके योग्य नहीं होती। इसीलिए शस्त्रों का उपहार देने का निर्णय किया है।' ___ 'मंत्रीश्वर बुद्धिशाली हैं। किसी को सन्देह न हो, इसलिए यह उपाय निकाला है।' सम्राट के मन में सन्देह का अंकुर फूट पड़ा।
'शस्त्र उत्तम प्रकार के हैं। महामंत्री ने अपनी कल्पना से अनेक शस्त्रों का निर्माण कराया है।' विमलसेन ने विशेष बात बताई।
'हां, तुझे क्या लगा?'
'महाराज! मंत्रीश्वर के हृदय में कोई पाप नहीं है। किन्तु शस्त्रों के उपहार की बात अत्यन्त नयी होने के कारण सन्देह पैदा करती है।'
सम्राट् चिन्तन में पड़ गए। कुछ क्षणों बाद बोले- 'मंत्रीश्वर को इसका भान भी न होने पाए कि मैं उनके कार्य को सन्देह की दृष्टि से देखता हूं। राज्य-लोभ के लिए मुनि अपना मुनित्व भी छोड़ देते हैं। महामंत्री भी तो एक मनुष्य ही है। मनुष्य को समझना अत्यन्त कठिन होता है। तू सावधान रहना। अभी मैं और सही-सही जांच कराऊंगा। फिर मैं अपना निर्णय बताऊंगा।' कहकर सम्राट् आसन से उठ गए।
विमलसेन ने नमस्कार किया। जाते-जाते सम्राट् ने कहा- 'इस संबंधी विशेष समाचार जानते रहना।'
सम्राट् के हृदय में चिनगारी सुलग चुकी थी। आर्य स्थूलभद्र और कोशा
१७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org