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________________ ३२. सम्राट् का निर्णय मनुष्य के मन में जब शंका का अंकुर उत्पन्न हो जाता है, तब सत्य भी असत्य आभासित होता है। गत दिन का महान मानव शंका का गुलाम हो जाता है। वह सचमुच दयापात्र बन जाता है और न जाने उसका भविष्य कितना भयंकर होता है। मगधपति घननन्द की आंखों में सन्देह का विष घुल गया । विष का प्रसार थोड़ा नहीं होता, वह तत्काल फैल जाता है। आंख का विष हृदय तक पहुंच गया। जो शकडाल पितातुल्य कल्याणकारी दिख रहा था, वह आज भयंकर शत्रु-सा प्रतीत होने लगा। संसार में सबसे कठिन कार्य है सत्य और असत्य का निर्णय । सम्राट् के चिन्तन की दिशा बदल चुकी थी। उन्होंने इतना भी नहीं सोचा- यदि शकडाल को राज्य की भूख होती तो उसने अब तक अपने चरणों तले दबा दिया होता। एक नहीं, अनेक राज्यों का स्वामी वह बन जाता। उसकी बुद्धि के आगे सारे राज्य निर्धन हैं, गरीब हैं। शकडाल यदि चाहता तो नंदवंश की इतिश्री कर देता । उसे इस प्रवृत्ति में कुछ ही क्षण लगते। इसके संकेत मात्र से अनेक राजा क्रान्ति या आक्रमण करने में एकत्रित हो जाते। इसके एक ही प्रहार से मगध की सारी सेना पलायन कर देती, इतनी शक्ति है, शकडाल में। इसकी एक इच्छा मात्र से पाटलीपुत्र नगर मिट्टी में मिल जाता । सम्राट् मन-ही-मन जानते थे कि शकडाल कल्पक वंश के गौरव की रक्षा करने में कृतसंकल्प है। वह ऐसा नीच कार्य कभी नहीं कर सकता। परन्तु सम्राट् की आंखों का विष हृदय को शून्य बना चुका था। आर्य स्थूलभद्र और कोशा १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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