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________________ शस्त्र-निर्माण की बात यथार्थ थी। महामंत्री के प्रति उसकी श्रद्धा इतनी अगाध थी कि वह श्लोक की चर्चा महामंत्री से नहीं कर सका। एक दिन सम्राट् प्रात: भ्रमण से लौट रहे थे। महाप्रतिहार साथ में था। उसने कहा- 'महाराज! एक समस्या उभर रही है।' 'कैसी समस्या ?' 'इस समस्या के साथ आपके जीवन का प्रश्न है।' 'मेरे जीवन का सम्बन्ध है ? क्या घटना घटी है?' 'आप क्षमा करें तो मैं एक निवेदन करूं।' 'अवश्य कहो। क्या वातावरण बना है?' 'महामंत्री ने आपके विनाश का षड्यंत्र रचा है, ऐसा ज्ञात हुआ है।' 'असंभव, असंभव!' सम्राट् ने कहा। 'नहीं, प्रभो! यह बात सारे नगर में प्रचारित हो चुकी है। महामंत्री अपने घर पर नये-नये शस्त्रों का निर्माण करा रहे हैं। वे उन शस्त्रों से आपका विनाश कर अपने पुत्र श्रीयक को राजगद्दी पर बैठाएंगे।' 'इसका कोई पुष्ट प्रमाण है ?' सम्राट् ने पूछा। 'हा, महाराज! यह श्लोक इसका पुष्ट प्रमाण है। यह श्लोक बच्चेबच्चे के मुंह पर है।' विमलसेन ने सम्राट् के समक्ष पूरा श्लोक रखा। 'अच्छा, महामंत्री के प्रति मुझे पूर्ण विश्वास है। किन्तु राज्य का लोभ कोई सामान्य आकर्षण नहीं है। क्या तूने शस्त्र-निर्माण को प्रत्यक्ष देखा है?' __ 'नहीं, किन्तु मैंने विश्वस्त व्यक्तियों से सुना है।' 'सुनी हुई बातों पर विश्वास करना खतरे से खाली नहीं होता। तू जा, सारी घटना देखकर मुझे बताना।' 'जैसी प्रभु की आज्ञा।' 'यह जांच संध्या से पहले हो जानी चाहिए। मैं प्रथम प्रहर में तेरी प्रतीक्षा करूंगा।' सम्राट ने आदेश की भाषा में कहा। 'जैसी मगधेश्वर की आज्ञा।' कहकर महाप्रतिहार ने नमस्कार किया। १७५ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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