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३१. चिनगारी
महामंत्री के द्वेषी सभी व्यक्तियों ने संगठित होकर वररुचि द्वारा रचित श्लोक को घर-घर और गली-गली में प्रचारित किया। खेलते-खेलते बालक भी इसी श्लोक को दुहराते
न वेत्ति राजा यदसौ, शकडाल: करिष्यति।
व्यापाद्य नन्दं राज्ये, श्रीयकं स्थापयिष्यति॥ गली-गली में प्रचारित यह श्लोक धीरे-धीरे राजभवन के राजपुरुषों के कानों से टकराया। इसकी जांच-पड़ताल की। उन्होंने पाया कि यह श्लोक जन-जन के मुंह पर है। उन्हें चिन्ता हुई। वे सोचने लगे-क्या यह किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी है ? क्या यह सत्य का अग्र कथन है। क्या किसी ने मजाक में यह प्रचारित किया है ? क्या महामंत्री के किसी शत्रु ने इसे झूठे प्रचार के सहारे महामंत्री को बदनाम करने का प्रयास किया है ? यह श्लोक इतना प्रचारित क्यों हुआ? कैसे हुआ? उन्हें रहस्य समझ में नहीं आया। इस बात का रहस्य केवल सुकेतु और उसके साथी ही जानते थे।
महामंत्री जब-जब सभा में आते, दूसरे सभासद उन्हें कुछ सन्देह की दृष्टि से देखते। महामंत्री ने इस बात को जान लिया। उन्हें आश्चर्य हुआ। किसी सभासद की यह हिम्मत नहीं थी कि वह महामंत्री से इस तथ्य का खुलासा करता। महामंत्री का प्रभाव अचूक था। सब भयभीत थे। महामंत्री पुत्र के विवाह में व्यस्त थे, इसलिए सभासदों की संदिग्ध दृष्टि के प्रति उदासीन रहे। उन्हें सन्देह का ऐसा कोई कारण लगा ही नहीं।
कुछ समय तक यह वातावरण बनता रहा। एक दिन यह ज्वाला महाप्रतिहार विमलसेन के कानों तक पहुंची। महाप्रतिहार आश्चर्य से स्तब्ध हो गया। उसने शस्त्र-निर्माण के विषय में अनेक राजपुरुषों से चर्चा की।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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