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________________ कोशा बोली- 'दो महीने पूर्व मैंने अपने मन की बात आपको बताई थी।' 'ओह!' कहकर स्थूलभद्र हंस पड़ा और हंसते-हंसते बोला-'प्रिये! संसार में मातृत्व की इच्छा प्रत्येक नारी के प्राणों में होती है। यह अस्वाभाविक या लज्जाजनक भी नहीं है। किन्तु सन्तान की प्राप्ति किसी मंत्रबल या प्रयोगबल का विषय नहीं है। यह भाग्य की सम्पत्ति है। भाग्य जिस दिन उदार होगा, उस दिन तेरी इच्छा स्वत: फलीभूत हो जाएगी। क्या इसीलिए कापालिक के आश्रम में जाना है ?' 'हां, हमारा विवाह हुए छह वर्ष बीत गए हैं, इसलिए.....' कोशा अपना वाक्य पूरा नहीं कर सकी। स्थूलभद्र बोला- 'कोशा! कर्माधीन विषय को शाम्ब कापालिक के भरोसे पर छोड़ना, मुझे उचित नहीं लगता। वहां जाने पर पशुहिंसा या नरबलि को स्वीकृति देनी पड़ेगी। किसी निर्दोष की हिंसा से यदि सन्तान की प्राप्ति होती है तो ऐसी सन्तान की इच्छा मैं कभी नहीं करूंगा।' 'तो?' 'चिन्ता मत कर । तू या मैं अभी बूढ़े नहीं हुए हैं। भाग्य को पलटने की शक्ति न कापालिक में है और न किसी मांत्रिक में।' तत्काल कोशा स्वामी के चरणों में गिरकर बोली- 'मुझे क्षमा करें।' 'पगली कहीं की! चलो, लौट चलते हैं। बहुत दूर आ गए।' पत्नी का हाथ पकड़ते हुए स्थूलभद्र ने कहा। दोनों लौट पड़े। भवन में आने के बाद उज्जयिनी से आए हुए संदेशवाहक को बुला भेजा। संदेश पढ़ा। आचार्य कुमारदेव बीमार थे। वे कोशा से मिलना चाहते थे। भिक्षुणी सुनन्दा गुर्जर देश की ओर चली गई थी। ये समाचार सुनकर कोशा का मन व्याकुल हो उठा। पितातुल्य आचार्य और भिक्षुणी माता के स्मरण ने उसकी आंखें गीली कर दीं। स्थूलभद्र ने कहा- 'प्रिये! हमको उज्जयिनी जाना ही चाहिए।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा १५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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