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________________ उपवन की थोड़ी दूरी पर एक मार्ग पर बीस-पचीस कापालिक हाथ में मशाल लेकर जा रहे थे। स्थूलभद्र की दृष्टि उन पर पड़ी। आर्य स्थूलभद्र ने कोशा से कहा- 'देवी! यहां कोई कापालिक रहता हो, ऐसा लगता है।' 'हां, मैंने सुना है कि दूर के एक वन में शाम्ब कापालिक का भयंकर आश्रम है।' ऐसा कहकर कोशा ने पीछे आती हुई हंसनेत्रा से पूछा- 'शाम्ब कापालिक का आश्रम इसी ओर तो है ।' 'हां, देवी!' हंसनेत्रा ने कहा । स्थूलभद्र ने हंसनेत्रा की ओर देखकर कहा - 'हंसनेत्रा ! मैंने सुना है कि शाम्ब कापालिक नरबलि देता है ?' 'हां, महाराज! इस ओर कोई जाता ही नहीं ।' कोशा बोली- ' शाम्ब कापालिक को मैंने राजभवन में देखा था। वह एक चमत्कारी पुरुष है।' 'देवी! जहां हिंसा होती है, वहां विशुद्ध चमत्कार नहीं हो सकता ।' स्थूलभद्र ने चलते-चलते कहा । कोशा ने कहा- 'धर्म की दृष्टि से आपका कहना सच है । परन्तु सम्राट् और साम्राज्ञी इस पर बहुत प्रसन्न हैं । वे कहते हैं कि श्रीनन्द का जन्म इसी कापालिक की कृपा से हुआ।' स्थूलभद्र बोला- 'यह अपनी-अपनी श्रद्धा पर निर्भर करता है।' कोशा ने हंसते हुए कहा- 'मेरी एक इच्छा है- एक बार हम उस आश्रम में चलें ।' 'तुझे जाना हो तो मैं अवश्य ही साथ आऊंगा। परन्तु बिना प्रयोजन वहां जाने से लाभ ही क्या है ? ' 'प्रयोजन तो है ही । ' 'शाम्ब कापालिक ने मेरे नृत्य पर मुग्ध होकर कहा था - देवी! जब कोई कार्य हो तो आश्रम में अवश्य आना ।' 'ऐसा कोई कार्य.....' स्थूलभद्र ने लज्जा से लाल हुए अपनी पत्नी के मुंह की ओर देखते हुए कहा । १५७ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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