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कोशा बोली- 'प्रवास की तैयारी करूं?' 'हां, दो-चार दिनों में ही हमें यहां से चल पड़ना है। ऐसा ही हुआ।
चित्रलेखा की देख-रेख करने के लिए उद्दालक और चित्रा से कहकर, थोड़े दास-दासियों सहित देवीकोशा अपने प्रियतम के साथ उज्जयिनी की ओर विदा हुई।
उज्जयिनी दूर थी। पंथ विकट था। शीघ्र पहुंचकर आचार्यदेव से मिलने की उत्कंठा तीव्र थी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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