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________________ 'पिताजी के अतिरिक्त कोई नहीं जीत सकता।' स्थूलभद्र ने अपना विश्वास व्यक्त किया। ___ 'मेरी भी यही कल्पना है।' कोशा ने महामंत्री के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। उद्दालक आया। दोनों को नमन कर अपनी प्रिया चित्रा की ओर तिरछी दृष्टि से देखता हुआ वहां खड़ा हो गया। स्थूलभद्र ने पूछा- 'उद्दालक! विजय किसकी हुई ?' 'महामात्य शकडाल की। 'उद्दालक! राजसभा की सारी कार्यवाही मुझे सुना।' उद्दालक ने राजसभा की सारी घटना ज्यों की त्यों कह सुनाई। कोशा ने स्वामी की ओर देखकर कहा-'आर्यपुत्र! आपकी बहनें जिस काव्य से परिचित थीं, उसको वररुचि ने कैसे कहा होगा?' स्थूलभद्र हंस पड़ा। हंसते-हंसते उसने कहा- 'देवी! यह तो एक राजनीति की चाल है। वास्तव में वररुचि सही है। उसके सम्पूर्ण काव्य नये हैं, नव्य-निर्मित हैं।' 'तो फिर?' 'यही महामंत्री का बुद्धि-गौरव है। मेरी सातों बहिनों की स्मृतिशक्ति तीव्र है। एक बार सुना हुआ काव्य उन्हें याद रह जाता है। उत्तरोत्तर प्रत्येक बहन की धारणा-शक्ति ऐसी ही है। पहली बहन एक बार सुनकर, दूसरी बहन दो बार सुनकर, तीसरी तीन बार सुनकर नये से नया काव्य स्मृति में रख सकती है। इसी प्रकार सातवीं बहन सात बार सुने काव्य को स्मृतिपटल पर अंकित कर लेती है। यह उनकी सहज शक्ति हैं' 'ओह! तब तो पिताजी ने जो यह किया, उसके पीछे भी कोई-नकोई पुष्ट कारण होगा?' 'अवश्य ही, इसके बिना पिताजी किसी की प्रतिष्ठा को आंच तक नहीं आने देते।' उद्दालक नमस्कार कर भवन की ओर लौट गया। जाते समय उसने अपनी प्रेयसी चित्रा की ओर प्रेमभरी दृष्टि से देखा। चित्रा अपने स्वामी का आर्य स्थूलभद्र और कोशा १५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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