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________________ 1 मनोभाव जान गई । कोशा ने दोनों की दृष्टिगत भाषा को स्पष्ट करते हुए कहा- 'चित्रा ! तेरा उद्दालक राजसभा के विवाद को सुनकर पागल-सा हो गया है। तुझे उसकी सेवा में जाना चाहिए।' चित्रा ने संकोच भरे स्वर में कहा - 'देवी!' 'देवी से भी देव का महत्त्व अधिक होता है। तू जा । हम जलक्रीड़ा करने आ रहे हैं-उपवन के जलाशय में सौम्यगंध का सत्त्वार्क डालकर सारी तैयारी रखना । ' चित्रा मस्तक झुकाकर चली गई। कोशा ने स्थूलभद्र से कहा'स्वामीनाथ ! अब हम उपवन में चलें । चित्रलेखा आराम से सो रही है ।' दोनों उठे । जाते-जाते कोशा ने हंसनेत्रा से कहा- 'जब लेखा जाग जाए तब उसे स्नान कराकर चित्रशाला में ले आना।' संध्या के पश्चात् स्थूलभद्र और कोशा गंगा किनारे जाने की तैयारी करने लगे। कोशा ने नीलरंग का कमरपट्ट, श्वेत कंचुकी और अशोक के फल जैसे रंग का उत्तरीय धारण किया । माणक, मुक्ता और पन्ने के अलंकार पहने। उसने वज्र की अंगूठी पहनी। कोशा तैयार होकर स्वामी के वस्त्रगृह में गई । स्थूलभद्र ने कसुंबल पीताम्बर और हरित उत्तरीय धारण किया और वज्रमुक्ता का बाजुबंध बांधा। इतने में ही कोशा वहां पहुंची और स्वामी के गले में श्रीमंती और माधवी फूलों की माला पहनाती हुई बोली- 'कितने सुन्दर हैं आप ! ' स्थूलभद्र ने मुसकराकर कहा - 'यह सारा देवी के सौन्दर्य का ही प्रभाव है। ' 'नहीं, स्त्री के सौन्दर्य की शोभा उसके स्वामी से ही होती है।' 'कोशा ! तेरी पतिभक्ति, तेरे प्रेम और तेरे नारीत्व को देखकर मेरा अन्त:करण परम प्रफुल्लित रहता है। तेरे योग से अतीत की मेरी सारी कल्पनाएं धूमिल हो गई हैं । ' 'अतीत की कल्पनाएं? मैं कुछ भी नहीं समझ सकी।' १५५ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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