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महामंत्री ने अपनी बड़ी पुत्री की ओर देखा । बड़ी पुत्री यक्षा खड़ी
होकर बोली- 'कविराज ! आपने जो काव्य पाठ किया है, उसको मैंने पिताश्री को अनेक बार सुनाया है। ये श्लोक तो हमारे घर में सभी सदस्यों को याद हैं।'
वररुचि आश्चर्य में डूब गया। उसने कहा- 'यह सरासर झूठ है। यदि तुम सत्य कहती हो तो वे चारों श्लोक अभी कह सुनाओ।'
'बहुत खुशी से ' - कहकर यक्षा ने मगधेश्वर की आज्ञा मांगी और महाकवि द्वारा उच्चारित चारों श्लोक, उसी शैली में सुना दिए। महामंत्री की दूसरी छहों कन्याओं ने भी वे श्लोक ज्यों के त्यों सुना दिए ।
वररुचि ने सुना। उसका खून जम गया। वह लज्जा के कारण हतप्रभ हो गया। सम्राट् ने उसकी ओर तिरस्कार भरी दृष्टि से देखा। महामंत्री ने कहा - 'कविराज! यह सम्राट् की राजसभा है। तुम पवित्र ब्राह्मण हो । मगधेश्वर तुमको क्षमा करते हैं, किन्तु भविष्य में कहीं भी ऐसी चौर्यवृत्ति का सहारा मत लेना ।'
एक सभासद् ने कहा - ' कवि ने अक्षम्य अपराध किया है। इन्हें क्षमा न दी जाए।'
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महामंत्री ने कहा- 'सम्राट् ने क्षमा इसी आशय से प्रदान की है कि कवि भविष्य में यथार्थ रूप में महाकवि होकर भारत की श्रीवृद्धि करे । ' सभी ने महामंत्री का जय-जयकार किया ।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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