SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'कविवर! महामंत्री से सावधान रहना। उन्होंने यह दांव सोचसमझकर खेला है, इसे भूल मत जाना।' 'महामंत्री की बुद्धि वृद्ध हो चुकी है। मित्र! आज मैं परम प्रसन्न हुआ हूं। कल राजसभा में जो काव्यपाठ करना है, उसकी रचना मैं एक प्रहर पूर्व ही करूंगा और उसे कंठस्थ रखूगा। कोई उस काव्य की झलक भी नहीं पा सकेगा। महामंत्री की पराजय निश्चित है।' वररुचि ने दृढ़तापूर्वक कहा। __बेचारा वररुचि भूल गया था कि महामंत्री शकडाल मगध के विशाल साम्राज्य पर अनुशासन कर रहा है। महाकवि और महामंत्री के बीच हुए विवाद की खबर सारे देश में तत्काल फैल गई। महामंत्री के गुप्तचरों ने घर-घर इस विवाद की बात को फैलाया और साथ-साथ तथ्य भी प्रचारित किया गया-महामंत्री ने जो विवाद किया है, वह उचित नहीं है। महाकवि को मिलने वाले पुरस्कार को न सह सकने के कारण महामंत्री ने यह विवाद खड़ा किया है। महाकवि सच्चे हैं। इस विवाद से महामंत्री का स्थान सदा-सदा के लिए खिसक जाएगा। दूसरा दिन उगा। हजारों-हजारों नगरजन राजसभा में पहुंच गए। महामंत्री भी अपनी सातों कन्याओं के साथ राजसभा में आ गए। सातों कन्याएं यथास्थान बैठ गईं। वररुचि अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में उपस्थित हुआ। उसके चेहरे पर विजय की रेखाएं खचित हो रही थीं। सम्राट् और साम्राज्ञी भी आ गए। सभा के व्यवस्थापकों ने आज की सभा का उद्देश्य स्पष्ट किया। उन्होंने महाकवि से काव्यपाठ करने की प्रार्थना की। वररुचि ने खड़े होकर सरस्वती की प्रार्थना की और फिर अटपटी शैली से विशाल अर्थ वाले चार श्लोक कहे। कवि ने महामंत्री से कहा- 'एक प्रहर पहले रचे गए ये चारों श्लोक क्या नये नहीं हैं ? क्या ये चुराए हुए हैं?' १५१ आर्यस्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy