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है, वह केवल दूध पर कैसे टिक पाएगा? यह प्रश्न सबके मन में उलझन पैदा कर रहा था, किन्तु स्थूलभद्र ने कोशा को प्रयोग पर स्थिर रहने की प्रेरणा दी और उसके अतिशायी परिणाम की अवगति दी।
लगभग आठ दिन तक दूध का पथ्य अटपटा-सा लगा। नवें दिन औषधि का पूर्ण पाचन हो गया और अब दूध का पथ्य अमृतमय लगने लगा।
आज प्रयोग का इक्कीसवां दिन है। आज दूध का पथ्य सम्पन्न हो जाएगा। आज इक्कीस दिनों की यह कठोर साधना भी समाप्त हो जाएगी।
कोशा औषधि के चमत्कार को अनुभव कर रही थी। उसके प्रयोगों में उल्लास और उत्साह का वेग अति तीव्र हो गया। उसकी स्मृति-शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि उसे बाल्यकाल की सारी स्मृतियां प्रत्यक्ष हो गईं। संगीत और नृत्य के श्लोकबद्ध शास्त्र जिह्वाग्र पर नाचने लगे। उसके शरीर में शक्ति और स्फूर्ती का अजस्र प्रवाह उमड़ पड़ा था।
वह मानसिक परिवर्तनों और भावनात्मक रूपान्तरण का सतत अनुभव कर रही थी। उसके शरीर में भी चमत्कारिक परिवर्तन हुआ। उसके केश और अधिक श्याम और घुटने तक लम्बे हो गए। उनका स्पर्श अत्यन्त कोमल और कमनीय हो गया। उसका रूप बेजोड़ तो था ही, पर इस प्रयोग से उसमें और अधिक लावण्य छटकने लगा। उसके मदभरे नयनों की तेजस्विता और अधिक बढ़ गई और उसके कटाक्ष दूसरों के मन को बींधने में अधिक शक्ति-सम्पन्न हो गए। सौन्दर्य का ओज विशेष हो गया।
यह सारा परिवर्तन असाधारण था। कोशा के भवन के सभी सदस्य देवी के रूप और लावण्य से आनन्दविभोर हो रहे थे। स्थूलभद्र की प्रसन्नता सीमा पार पहुंच चुकी थी। सबके मन में सिद्धरसेश्वर की वैज्ञानिक शक्ति पर भावभरी श्रद्धा उमड़ रही थी।
मध्याह्न के पश्चात् स्थूलभद्र नौका द्वारा बाहर गए।
संध्या का समय प्रारम्भ हो चुका था। रात्रि का प्रथम प्रहर प्रारम्भ हुआ। अभी तक स्थूलभद्र नहीं आए। कोशा का मन भारी हो गया। वह अपनी सखियों के साथ मन बहलाने के लिए चौपड़ खेलने लगी।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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