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________________ २५. प्रयोग का परिणाम सिद्धरसेश्वर के द्वारा प्राप्त दिव्य औषधि की बात जब कोशा ने अपने स्वामी से कही तब आर्य स्थूलभद्र ने कहा- 'रूप ! यह भी कायाकल्प का ही एक प्रकार है। तू निश्चित ही भाग्यशालिनी है - सिद्धरसेश्वर ने तेरी कला का हृदय से अभिनन्दन किया है।' कोशा बोली- 'आपकी आज्ञा हो तो मैं पूर्णिमा के दिन औषधि का पान करूं !' 'प्रसन्न हृदय से तू उसका पान कर, मेरी इसमें सहमति है। मैं तेरी सेवा में रहूंगा।' स्थूलभद्र ने मुसकराते हुए कहा। कोशा ने औषधि-प्रयोग की सारी बात बताई । दूसरी ही दिन दोष-शुद्धि के लिए दी गई गुटिका लेकर कोशा ने औषधि-पान किया। औषधि तीव्र थी। एक-दो घटिका के बाद कोशा के उदर में प्रबल दाह प्रारम्भ हुआ। यह देखकर स्थूलभद्र घबरा गया। उसने कहा - 'देवी! मैं अभी सिद्धरसेश्वर महात्मा को बुला लेता हूं।' 'नहीं, बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। दो दिन पूर्व ही आर्य तूल आए थे। उन्होंने कहा था कि इस दिव्य औषधि का यह परिणाम अवश्यंभावी है। यह दाह सूर्योदय तक रहेगा । फिर यह धीरे-धीरे शान्त जाएगा। दूध का पथ्य इसे शान्त कर देगा ।' कोशा ने अपने व्यग्र पति से कहा । वैसे ही घटित हुआ। सूर्योदय के पश्चात् दूध का पथ्य लेते ही दाह शान्त हो गया। इस प्रयोग से चित्रा, माधवी, मालिनी, हंसनेत्रा आदि स्वजन चिन्तित हो गए थे । उन्होंने सोचा - जो शरीर विविध पौष्टिक पकवानों पर अवलम्बित रहा आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only १४२ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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