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________________ 'यह उपाय तो ठीक है। किन्तु एक बात है कि स्थूलभद्र के हाथ काट देना सरल कार्य नहीं है। उसे रोगग्रस्त किया जा सकता है। हमें इस विषय में किसी विष-चिकित्सक की राय लेनी होगी।' सुकेतु ने कहा। मानो कि हमने विष-चिकित्सक को साधकर औषध प्राप्त कर ली। पर उसका प्रयोग कैसे होगा ?' वररुचि ने पूछा। सुकेतु ने हंसते हुए कहा- 'यह सरल कार्य है। कोशा के भवन की किसी परिचारिका को हाथ में कर लेने पर यह काम सम्पन्न हो जाएगा। और धन सब कुछ करा सकता है, कविवर! इसे मत भूल जाना।' 'कौन होगा वह विष-चिकित्सक?' दोनों सोचने लगे। वररुचि ने उछलते हुए कहा- 'मित्र! मिल गया उपाय। अब मान लो कि कोशा आपकी हो गई। सिद्ध पुरुष भगवान शाम्ब कापालिक इस विषय में आपका पूरा मार्गदर्शन कर सकते हैं। सुकेतु नाम सुनकर हर्षित हुआ। उसने कहा- 'शाम्ब कापालिक है तो समर्थ। वह अपनी दृष्टि से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को गिरा देता है। उसको कुछ स्वर्ण और पांच-सात रूपवती दासियां दी जाएं तो वह अपना कार्य कर सकता है। परन्तु वह महामंत्री शकडाल का परम मित्र है। स्थूलभद्र के लिए वह ऐसा कभी नहीं करेगा।' वररुचि ने कहा-'अचछा, शाम्ब कापालिक को हम छोड़ दें। राजगृह में मेरा मित्र रहता है। वह है विष-चिकित्सक श्रीनाथ का शिष्य।' 'ओह ! काम बन गया। मैं उसको पुष्कल पुरस्कार दूंगा। आज ही उसको यहां बुला भेजो।' ___ 'मित्र! आप मान ही लेना कि कार्य हो गया। अब रूप और यौवन की श्री रूपकोशा आपके हृदय की शोभा होकर धन्य-धन्य बनेगी।' वररुचि ने मुसकराते हुए कहा। सुकेतु ने समझा कि यह तो सहज-सरल कार्य है। १३७ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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