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'स्थूलभद्र को समाप्त करने के लिए ही मैंने धनुष पर बाण चढ़ाया था, परन्तु नियति ! घोड़े चमके और रथ उलट गया। मैं और गजेन्द्र दोनों बेहोश हो गए। इस अवसर का लाभ उठाकर स्थूलभद्र कोशा को ले भागा ।' वररुचि विचारमग्न हो गया ।
सुकेतु ने उससे सारी बात छिपा ली।
वररुचि ने पूछा- 'अब ऐसा अवसर फिर कब प्राप्त हो ?'
'इस विषय में हम कुछ विमर्श करेंगे। ऐसा उपाय सोचेंगे कि सब कुछ अपना.....'
'मित्र! जहां नहीं पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि । मैं एक विशेष बात बताता हूं। कोशा स्थूलभद्र पर आसक्त नहीं है। वह उसके वीणावादन पर मुग्ध है।'
'ओह! तुम्हारा कथन सत्य है ।'
'क्या आप वीणावादन सीख सकते हैं ?'
उत्तर में सुकेतु ने कहा- 'वीणा के तार पर अंगुलियां नहीं चलतीं, धनुष पर ही वे चलती हैं
'यदि कोशा को पाना है तो वीणावादन सीखना होगा ।'
सुकेतु ने गम्भीर होकर कहा - 'अब यह अशक्य है । कोई दूसरा उपाय खोजना चाहिए । '
'दूसरा मार्ग भी है, पर है वह कठिन....' वररुचि बोला । 'कैसा भी कठिन क्यों न हो, मैं उसे सरल बना दूंगा।' सुकेतु ने
कहा ।
वररुचि ने कक्ष के चारों ओर देखा और कहा - 'स्थूलभद्र के बाएं हाथ को या तो रोगग्रस्त कर देना चाहिए या उसे कटवा देना चाहिए।' सुकेतु विरामग्न हो गया ।
वररुचि बोला - "ऐसा होने पर स्थूलभद्र वीणावादन करने में असमर्थ हो जाएंगे और तब कोशा के हृदय में उसके प्रति कोई लगाव नहीं रहेगा। फिर वह आपकी.......
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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