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संभाल नहीं सका। रथ उलट गया। मुझे कुछ विशेष चोट लगी और मूर्च्छित हो गया।'
कामी पुरुष असत्य का जाल बिछाने में निपुण होते हैं और दूसरों को ठगने में वे कभी नहीं हिचकते। , ,
श्रीबेला ने कहा- 'चोट बहुत गहरी लगी है। राजवैद्य भी आपकी अवस्था देकर गम्भीर हो गए थे।'
'बेला! जीवन में ऐसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं, फिर हमारा जीवन मृत्यु को हाथ में लिए चलता है। परन्तु तेरा प्रेम मेरी सदा रक्षा करता है।'
श्रीबेला लज्जा से अभिभूत हो गई। सुकेतु दो दिन बाद स्वस्थ हो गया।
एक दिन प्रात: सुकेतु शौचादि से निवृत्त होकर आराम कर रहा था। एक परिचारक ने आकर कहा-'कवि वररुचि आपसे मिलने आए हैं।'
'उनको सत्कार-सहित यहां ले आओ।' वररुचि ने खण्ड में प्रवेश कर आशीर्वाद देते हुए कहा-'भव्यं भवतु।' सुकेतु ने पूछा- 'आप कल नृत्य देखने गए थे?'
'हां....और कोशा को देखकर मैं विस्मय में पड़ गया। मुझे ज्ञात था कि आप कोशा को अपने रथ में बिठाकर ले गए हैं। परन्तु यह कैसे हुआ ?' वररुचि ने प्रश्न किया।
'महाकवि! छोटी-सी एक असावधानी ने सारा पासा ही पलट दिया। कोशा के साथ उसकी एक दासी भी थी। रथ तेज चल रहा था। अचानक वह उछली और जमीन पर जा गिरी। मैंने सोचा ऊबड़-खाबड़ जमीन के कारण वह उछलकर नीचे गिर पड़ी हैं परन्तु उसने ही जाकर स्थूलभद्र से सारी घटना कही, क्योंकि नन्दपुर के परिसर में ही स्थूलभद्र पहुंच गया था।'
__ 'ओह! यह तो बहुत विचित्र हुआ। आप यदि स्थूलभद्र को समाप्त कर देते तो....?'
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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