SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. कवि की कल्पना-तरंग रथसारथि गजेन्द्र अपने स्वामी सुकेतु को मूर्छित अवस्था में रथ पर लिटा, नगर में लौट आया। योजना सफल हो गई, यह जानकर कवि वररुचि का मन हर्ष से लबालब भर गया। किन्तु जब उसने उसी रात्रि को कोशा का नृत्य देखा, तो उसे दाल में कुछ काला नजर आया। उसका हर्ष मन्द हो गया। उसने सुकेतु के समाचार जानने चाहे। पर उसे कहीं से भी कुछ रहस्य नहीं मिला। नगर में आने के पश्चात् सायंकाल के समय सुकेतु की मूर्छा टूटी। उसने गजेन्द्र से कहा- 'एक बात का ध्यान रखना, हमारी यह घटना किसी को ज्ञात न हो।' "ऐसा ही होगा' - गजेन्द्र ने कहा, 'परन्तु यदि देवी रूपकोशा महाराज के सामने अपने अपहरण की बात प्रकट कर देगी तो....' . 'सम्राट् मुझे कुछ नहीं कह सकेंगे। मैं कोशा को झूठी ठहरा दूंगा।' गजेन्द्र नमस्कार कर चला गया। थोड़े समय पश्चात् सुकेतु की पत्नी श्रीबेला स्वामी के आरामकक्ष में आयी। उसने पूछा- 'अब कैसे हैं ?' 'ठीक है।' श्रीबेला स्वामी सुकेतु के मस्तक पर धीरे-धीरे हाथ फेरती हुई बोली- 'मैंने गजेन्द्र से पूछा था कि स्वामी को क्या हुआ? उसने मुझे कुछ नहीं बताया। आप वसन्तोत्सव में मूर्च्छित कैसे हो गए?' सुकेतु ने पत्नी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- 'बेला! ऐसे तो कुछ भी नहीं हुआ। आज प्रात: मैं घूमने निकला। गजेन्द्र रथ के घोड़ों को आर्य स्थूलभद्र और कोशा १३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy