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________________ सुकेतु बाण को छोड़े, उसके पहले ही स्थूलभद्र घोड़े से कूद कर रथ के अगले भाग पर आ पहुंचा। सुकेतु का बाण खाली गया। स्थूलभद्र ने शीघ्रता से गजेन्द्र के गले को पकड़ा और उसे चलते रथ से नीचे जमीन पर फेंक दिया। रथ के तेजस्वी अश्व अब सारथी के बिना निरंकुश हो गए। अभी-अभी रथ उलट जाएगा, ऐसा सबने अनुभव किया। किन्तु स्थूलभद्र ने अश्वों की लगाम अपने हाथ में थामी और पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर उनको रोका। इस परिस्थिति का लाभ उठाती हुई कोशा आगे के भाग में स्थूलभद्र के पास आ गई। क्षणभर के इस वातावरण से सुकेतु आश्चर्यचकित हो गया। उसने पीछे से स्थूलभद्र की गर्दन को पकड़ा। किन्तु स्थूलभद्र सावधान था। उसने तत्काल सुकेतु के मस्तक पर वज्रमुष्टि नामक प्रचंड प्रहार किया। प्रहार के आघात से सुकेतु उछलकर रथ से नीचे गिर पड़ा। मर्मस्थान पर तीव्र आघात होने के कारण वह बेहोश हो गया। रूपकोशा ने हर्ष भरे स्वर में कहा- 'स्वामी! यदि आप नहीं आते तो.....' स्थूलभद्र ने पत्नी पर प्रेममय दृष्टि डाली। कोशा के कमलनयन पर मोती जैसे दो आंसू छलक पड़े। स्थूलभद्र ने कहा- 'देवी ! तुम रथ को संभालो। मैं इस दुरात्मा को कुछ सीख दे आऊं।' सुकेतु होश में आया। वह मस्तक को सहलाते हुए उठने का प्रयत्न करने लगा। स्थूलभद्र उसके सामने आकर बोला- 'सुकेतु! खड़ा हो और तुझे यदि अपनी इज्जत रखनी हो तो देवी कोशा के चरणों में नतमस्तक होकर क्षमा मांग। मुझे विश्वास है कि देवी तुझे क्षमा करेगी।' ईर्ष्या और रोष से प्रज्वलित सुकेतु घायल सांप की भांति फुफकारता हुआ उठा और बोला- 'मगध-सम्राट् के सेनाध्यक्ष की शक्ति इतनी सामान्य नहीं है, जितनी तूने मान रखी है....क्षमा कौन करता है, तू अभी जान लेगा।' स्थूलभद्र हंस पड़ा। उसने हंसते-हंसते कहा- 'ओह! मगध के महान सेनापति! तुम इस प्रकार भूमि पर बैठे-बैठे अपनी शक्ति का परिचय नहीं दे सकोगे। तुम उठने में अशक्त हो तो मैं सहारा देकर उठाऊं?' १३१ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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