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________________ सुकेतु तत्काल उठ खड़ा हुआ और स्थूलभद्र का हाथ पकड़कर बोला- 'मगध के रथाध्यक्ष के अपमान का बदला अभी तुझे इसी क्षण मिल जाएगा।' इतना कहकर उसने अपना प्रचण्ड बाहु ऊंचा किया। रथ पर खड़ी कोशा चीख पड़ी। किन्तु स्थूलभद्र ने अपनी वज्र मुट्ठी में सुकेतु के हाथ को पकड़ लिया। हाथ छुड़ाने के लिए सुकेतु ने बहुत प्रयत्न किया। अत्यधिक शक्ति लगाने के कारण वह हांफ उठा । स्थूलभद्र ने हंसते हुए कहा- 'मगध का संरक्षण ऐसे कंगाल हाथों में है ? नि:शस्त्र पर मैं शस्त्र चलाना नहीं चाहता और न मैं तेरी दुर्बलता का ही लाभ उठाना चाहता हूं। फिर भी तुझे यदि अपने बल पर विश्वास हो तो मैं द्वन्द्व-युद्ध के लिए निमंत्रण देता हूं।' स्थूलभद्र ने सुकेतु को छोड़ दिया। सुकेतु बोला- 'मैं तेरे निमंत्रण को स्वीकार करता हूं।' दोनों में द्वन्द्व-युद्ध प्रारम्भ हो गया। रथ पर खड़ी रूपकोशा अत्यन्त चिन्तातुर हो गई। परिणाम क्या आएगा, यह प्रश्न उसके हृदय में वेदना जागृत कर रहा था। परन्तु उसकी वेदना अधिक नहीं टिकी। स्थूलभद्र ने सुकेतु को ऊपर उठाया और भूमि पर दे पटका । उसके मुंह से रक्त निकलने लगा। वह मूर्च्छित हो गया। विजयी प्रियतम को देखकर कोशा बांसों उछलने लगी। वह रथ से कूदकर स्वामी के पास आ गई और उल्लासमय नयनों से देखती हुई स्वामी से लिपट गई। स्थूलभद्र ने कोशा के मस्तक पर हाथ फेरते हुए कहा- 'प्रिये ! तुम्हारा वदन देखकर बेचारी उषा शरमा रही है। चलो, अश्व अपनी बाट देख रहा है।' कोशा बोली- 'स्वामी! आप अत्यन्त थक गए हैं। हम रथ से ही चलें।' स्थूलभद्र ने मधुर हास्य बिखेरते हुए कहा- 'प्रियतमा के आश्लेष से मेरी थकान दूर हो गई है। यदि हम रथ लेकर जाएंगे तो बेचारा सुकतु सायंकाल तक भी घर नहीं पहुंच पाएगा।' आर्य स्थूलभद्र और कोशा १३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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