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कोशा! एक ओर बैठी रहना । गतिमान रथ से यदि तू उतरने का प्रयत्न करेगी तो तेरा शरीर चूर-चूर हो जाएगा।'
स्थूलभद्र को देखकर सुकेतु की आंखों से आग बरसने लगी। रूपकोशा ने स्वामी को देखा। उसने कहा-'आर्यपुत्र!....' रथ की घर्घर ध्वनि के कारण स्थूलभद्र ने प्रिया के वचन नहीं सुने।
स्थूलभद्र ने ललकारते हुए कहा – 'सुकेतु! रथ को रोक!' सुकेतु ने उत्तर में धनुष पर बाण चढ़ाया।
कोशा बोली- 'सुकेतु ! एक निहत्थे व्यक्ति पर शस्त्र का प्रयोग करना धर्मनीति के विरुद्ध है।'
'कई बार धर्म को भी समय का दास बनना पड़ता है।' सुकेतु ने कहा।
स्थूलभद्र का अश्व रथ के अत्यन्त निकट आ गया। सुकेतु ने प्रचंड ध्वनि में कहा- 'स्थूलभद्र ! जीवन की बाजी लगाना आनन्दमयी नहीं होता। यदि जीवन प्रिय हो तो तत्काल लौट जा, नहीं तो यह बाण तेरे वक्षस्थल के आर-पार चला जाएगा।'
स्थूलभद्र बोला- 'सुकेतु ! मैं ब्राह्मण हूं। पत्नी को बिना लिये मैं नहीं जाऊंगा। मैं ऐसा कायर नहीं हूं।'
'तो फिर तू मृत्यु के लिए तैयार हो जा और मेरे बाण का सत्कार कर!' कहते हुए सुकेतु ने स्थूलभद्र के वक्षस्थल को लक्षित कर बाण छोड़ा। स्थूलभद्र अश्व की पीठ पर लेट गया। बाण ऊपर से चला गया। स्थूलभद्र ने कहा- 'सुकेतु ! यदि तेरे में वीरत्व हो तो रथ को रोक और मेरे साथ द्वन्द्वयुद्ध कर।'
__ सुकेतु ने समय को पहचान लिया था। उसने सोचा-विवाद करने में कठिनाई आ सकती है। गांव भी निकट है। उसने दूसरा बाण धनुष पर चढ़ाया।
स्थूलभद्र ने भी परिस्थिति को समझ लिया था। उसने सोचासाहस किए बिना प्रियतमा को मुक्त कर पाना अशक्य है।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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