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स्थूलभद्र ने अपना उत्तरीय कंधे पर रखा और कहा- 'चित्रा! मेरे अश्व को तैयार कर और जब तक मैं लौटकर न आऊं तब तक इस घटना को गुप्त रखना।'
'जैसी आपकी आज्ञा'-कहकर चित्रा बाहर गई। थोड़े समय में अश्व तैयार हो गया। स्थूलभद्र उस तेजस्वी अश्व पर चढ़कर वायुवेग से नंदपुर के मार्ग की ओर चल पड़ा।
उतावल के कारण स्थूलभद्र ने न वस्त्र ही बदले और न शस्त्र ही साथ लिये।
क्या स्थूलभद्र अपनी प्राणप्रिया को सुकेतु के पंजे से मुक्त कराने में सफल हो जाएंगे?
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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