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________________ कोशा भी रथ से कूदने के लिए उठी, परन्तु सुकेतु ने उसका हाथ पकड़ लिया। वह बोला- 'देवी! आपकी देह फूलों से भी कोमल है। 'सुकेतु ! तेरे इस कृत्य का परिणाम अच्छा नहीं होगा !' 'क्षत्रिय कभी परिणाम की चिन्ता नहीं करता।' 'तुझे नहीं भूलना चाहिए कि मैं मगध सम्राट् की राजनर्तकी हूं।' 'सम्राट् का मुझे तनिक भी भय नहीं है। मैं रथसैन्य का सेनापति हूं। यदि मैं चाहूं तो सम्राट् की शक्ति को अपने पैरों तले रौंद डालूं । और देवी! जिनके प्राणों में प्रेम छलकता हो वे प्रेमी मौत से कभी नहीं डरते । ' 'नीच.... दुराचारी.... अधम ....!' कोशा और कुछ नहीं बोल सकी। सुकेतु अट्टहास करने लगा । मार्ग ऊबड़-खाबड़ होने के कारण रथ की गति कुछ मन्द हुई। माधवी स्वेच्छापूर्वक रथ से कूदी थी। उसके कूदने में रक्षा और चालाकी दोनों थीं। पर उसको कुछ चोट लगी। उसकी परवाह न कर वह दौड़ी-दौड़ी शिविर में आयी और चित्रा की शय्या के पास हांफते - हांफते गिर पड़ी। चित्रा अभी देवी की प्रतीक्षा में जागती सो रही थी। वह उठी । माधवी को संभाला। उसे स्वस्थ किया। उससे पूछा - 'देवी कहां है ? तू अकेली कैसे आ गई ?' माधवी बोली- 'गजब हो गया ! देवी का अपहरण हो गया है। तू आर्य स्थूलभद्र को जगा ।' 'अपहरण ! किसने किया ?' 'रथपति सुकेतु ने।' 'किस दिशा की ओर ले गया है ?' 'नंदपुर के मार्ग पर ।' घबराई हुई चित्रा स्थूलभद्र की शय्या की ओर दौड़ी और आर्य स्थूलभद्र को जगाकर उसने अपहरण की बात कही। आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only १२६ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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