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________________ 'आप निश्चिन्त रहें' कहकर गजेन्द्र रथ से कूद पड़ा और शिविर के मुख्य द्वार पर पहुंचा। प्रहरी ने कहा-'आप कौन हैं ?' 'मैं सम्राट् का सन्देशवाहक हूं। देवी रूपकोशा जाग रही हैं?' 'नहीं, वे निद्राधीन हैं।' 'उन्हें जल्दी जगाओ। सम्राट् का महत्त्वपूर्ण सन्देश देना है।' 'आप प्रांगण में पधारें। मैं देवी को जगाने के लिए दासी को भेजता हूं।' प्रहरी के पीछे-पीछे गजेन्द्र शिविर के प्रांगण में गया। प्रहरी ने एक दासी को जगाकर बात कही। वह दासी चित्रा के पास गई, उसे जगाया और सम्राट् के संदेशवाहक की बात कही। चित्रा ने वस्त्र व्यवस्थित किए, बाहर आयी और संदेशवाहक की ओर तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए कहा- 'देवी को क्या कहना है?' 'संदेश गुप्त है।' चित्रा को कुछ आश्चर्य हुआ। वह कोशा के शयनकक्ष की ओर गई। कौशेय के परदे को हटाकर अन्दर झांका। दीपक के मंद प्रकाश में देखा कि दो महाप्राण सो रहे हैं। वह दबे पांव अन्दर गई। धीरे से देवी के चरणों पर हाथ रखकर बोली- 'देवी!' किन्तु कोशा नींद की प्रथम लहरियों में अठखेलियां कर रही थी। चित्रा ने मृदु स्वर में फिर कहा- 'देवी!....' कोशा अचानक जागी और बोली- 'कौन?' 'मैं चित्रा....' 'अभी क्यों?' 'सम्राट् का संदेशवाहक आया है।' ‘अब इस समय?' 'जी हां....आपसे मिलना चाहता है।' कोशा कुछ देर मौन रही। स्वामी की ओर देखा। स्वामी शांति से सो रहे थे। आर्य स्थूलभद्र और कोशा १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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