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वह बोली- 'आ रही हूं।' चित्रा बाहर चली गई। कोशा धीरे-धीरे शयनगृह से बाहर आयी।
गजेन्द्र प्रांगण में खड़ा था। कोशा को देखते ही गजेन्द्र ने नमस्कार कर कहा- 'देवी! असमय में जगाने के कारण क्षमाप्रार्थी हूं।'
'मगधेश्वर का क्या सन्देश है ?'
'सम्राट् और साम्राज्ञी आपके आगमन की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।'
'इस समय?'
जी हां...आपको लाने के लिए महामहिम मानवेन्द्र का रथ साथ में है।' गजेन्द्र ने विनयपूर्वक कहा।
'प्रयोजन.....?' 'इस दास को प्रयोजन का पता नहीं है।'
कोशा चिन्तन में पड़ गई। सम्राट् और साम्राज्ञी दोनों आज नृत्य में आए ही थे। अचानक क्या काम आ गया ?
कोशा को विचारमग्न देखकर गजेन्द्र ने कहा- 'देवी! मगधपति ने कहा हे कि आपको अविलम्ब वहां आना है।'
'किन्तु मैं आपको जानती भी नहीं। सम्राट् के संदेशवाहक के रूप में महाप्रतिहार विमलसेन ही आते रहे हैं।' कोशा ने कहा।
'आपका कथन सत्य है। किन्तु अर्धघटिका पूर्व ही महाप्रतिहार विमलसेन पाटलीपुत्र की ओर गए हुए हैं। उनका स्थान यह सेवक संभाल रहा है।' गजेन्द्र ने कहा।
'अच्छा'-कहकर कोशा ने चित्रा की ओर देखकर कहा-'चित्रा! आर्य स्थूलभद्र निद्रावश हैं। यदि जाग जाएं तो सारी बात कह देना। मैं वस्त्र-परिवर्तन करने जा रही हूं। माधवी को मेरे साथ चलना है। उसको तैयार रहने को कह देना।'
लगभग आधे घंटे के बाद देवी रूपकोशा माधवी को लेकर शिविर से बाहर आ गई।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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