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________________ २१. दुरात्मा आज कोशा ने चुल्लनी नृत्य कर हजारों प्रेक्षकों को आश्चर्यचकित कर डाला। आर्य स्थूलभद्र भी प्रिया का नृत्य देखकर आत्मविभोर हो गए। लगभग डेढ़ प्रहर तक यह कलामय नृत्य चला। दूर-दूर से आए हुए कलाकारों ने नृत्य देखकर अपने आपको धन्यमाना। उज्जयिनी के कलाचार्य ने कहा- 'देवी रूपकोशा मेनका से भी महान हैं। भारत में कला की ऐसी उपासना प्राचीन समय में किसी ने की हो, ऐसा स्मरण नहीं होता।' हजारों नर-नारियों की प्रशंसा प्राप्त करती हुई रूपकोशा अपने स्वामी के साथ शिविर में आयी। उस समय रात्रि का तीसरा प्रहर प्राय: बीत चुका था। वस्त्र-परिवर्तन कर वह शयनखंड में गई। आर्य स्थूलभद्र भी वस्त्र परिवर्तन कर आ पहुंचे थे। कोशा आज अत्यधिक थकान का अनुभव कर रही थी। आर्य स्थूलभद्र ने कहा- 'प्रिये! आज श्रम अधिक हुआ है। तुमको अब सो जाना चाहिए।' कोशा स्वामी के चरणों पर मस्तक रखकर निद्राधीन हो गई। कुछ ही क्षणों में स्थूलभद्र भी निद्रा की गोद में चले गए। अन्य दासियां भी अपने-अपने स्थान पर जाकर सो गईं। चित्रा ने प्रहरियों को सावधान किया और स्वयं भी अपनी शय्या की ओर चली। ठीक उसी समय तेजस्वी अश्वों से शोभित एक रथ रूपकोशा के शिविर के सामने आकर रुका। रथ में केवल दो व्यक्ति थे-एक सारथी और दूसरा सैनिक सारथी के वेश में सुकेतु था। वह बोला- 'गजेन्द्र! संभलकर बात करना।' १२१ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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