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'धन्यवाद, कोशा का मद उतारना हो तो पहले विरागी को दूर करना होगा।' वररुचि ने कहा।
सुकेतु उठकर वररुचि के निकट आया और अत्यन्त धीमे स्वरों में वररुचि के कानों में कुछ कहा।
सुकेतु की योजना सुनकर वररुचि सहसा उठा और सुकेतु के कंधों पर हाथ रखते हुए बोला-'मित्र! यह योजना मौत से खिलवाड़ करने जैसी है।'
'क्षत्रिय सदा मौत के साथ क्रीड़ा करता रहा है।' 'परन्तु....' 'परन्तु क्या?' सुकेतु ने पूछा। 'आपकी योजना यदि प्रकट हो गई तो?'
'यह रहस्य कभी प्रकट नहीं होगा। कल प्रात:काल ही मैं इस योजना को क्रियान्वित कर दूंगा।'
'कविवर! आप इस तथ्य को गुप्त रखें। यदि यह रहस्य प्रकट हो गया तो हम दोनों को मृत्यु का वरण करना होगा।'
'मित्र! निश्चिन्त रहो । कोशा के गर्व का खण्डन आप जैसा रणशूर और वीर पुरुषों के द्वारा ही होना चाहिए। स्थूलभद्र जैसे पितृगृह-त्यागी के अंक में कोशा का मस्तक शोभा नहीं देता। वह आप जैसे व्यक्ति की अंकशायिनी होकर ही शोभित हो सकती है।
___ 'आपके आशीर्वाद से सारा कार्य सफल होगा। आज रात्रि के तीसरे पहर के बाद यह कार्य पूर्ण कर दूंगा। सूर्योदय से पूर्व मैं लोट आऊंगा। आप आज रात मेरे शिवर में ही रहें।' |
'कोशा के नृत्य में तो जाना ही है?'
'हां, आज रात को कोशा चुलनी नृत्य करेगी। यदि आज हम नहीं जाएंगे तो लोगों को शंका होगी....नृत्य देखकर हम दोनों यहां साथ ही आएंगे।'
'यही उचित है। मित्र के शिविर में रात बिताने में मुझे आनन्दही आएगा।' वररुचि वहां से विदा हुआ। सुकेतु कोशा के अनिष्ट के लिए तैयारी में लग गया। यह षड्यंत्र क्या था?
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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