________________
एक रथ में कापालिक और उसका मुख्य शिष्य महापाद बैठा था। सम्राट् की सुन्दर परिचारिकाएं उन पर चामर डुला रही थीं। कापालिक की गोद में छह-सात वर्ष की एक सुन्दर कन्या बैठी थी। उसका नाम था 'उरुणी' । उसे वह ब्रह्मावर्त में प्राप्त हुई थी। कापालिक सदा उसे अपने पास रखता था।
शोभा-यात्रा प्रारम्भ हुई। सम्राट् और साम्राज्ञी सब साथ थे।
हजारों नर-नारी कापालिक का वर्धापन कर रहे थे।लगभग मध्याह्न के समय शोभायात्रा राजभवन में पहुंची।
रात का प्रथम प्रहर।
कोशा ने वंदना नृत्य प्रारम्भ किया। नृत्य के अन्त में उसने अनेक नृत्य-मुद्राओं से कापालिक को वन्दना की। कापालिक ने उठकर कोशा के मस्तक पर हाथ रखकर कहा- 'बेटी ! अद्भुत है तेरी कला । मैं प्रसन्न हूं। भगवती तेरा कल्याण करे। किसी भी संकट के समय तू मेरे आश्रम में चली आना....'
रूपकोशा ने शाम्ब कापालिक को पुन: नमस्कार किया।
शाम्ब कापालिक ने अपने गले से बहुमूल्य माला निकालकर कोशा को अर्पित की।
रूपकोशा ने न चाहते हुए भी उसे स्वीकार किया और जब वह चित्र-प्रासाद में आयी तब रात्रि का चौथा प्रहर प्रारम्भ हो चुका था।
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
११६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org