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________________ शाम्ब कापालिक अपने १०८ शिष्यों तथा शिष्याओं के साथ ब्रह्मावर्त की ओर गया था। वहां अनेक प्रकार की सिद्धियां और विष पर प्रभुत्व पाने की क्रिया की उपलब्धि उसे हुई थी। शाम्ब कापालिक की वय मर्यादा के विषय में कोई व्यक्ति कुछ भी कल्पना नहीं कर सकता। आज से पचीस वर्ष पूर्व यह जैसा था, आज भी वैसा ही दिख रहा है। सम्राट् को इसकी शक्तियों पर बहुत भरोसा है। यह वास्तव सुप्रभा देवी का गुरु है और इसीलिए सम्राट् इसका स्वागत कर रहे हैं। यह परिचय सुनकर स्थूलभद्र ने कहा - 'देवी! शाम्ब कापालिक बहुत भयंकर प्रतीत होता है। हिंसा पर आधारित उसकी सारी सिद्धियां शापरूप हैं । ' 'इतना होने पर भी मुझे तो उसके सामने नृत्य करना ही होगा ।' कोशा ने अन्यमनस्कता से कहा । 'प्रिये ! कर्त्तव्य के पालन में कभी दुःख नहीं मानना चाहिए ।' कोशा ने कुछ नहीं कहा । दूसरे दिन का सूरज उगा । शाम्ब कापालिक अपने शिष्यों के साथ नगर के बाहर वाले उद्यान में ठहरा हुआ था । उसके साथ सिंह, बाघ, भयंकर सर्प, बन्दर, हाथी, घोड़े आदि थे T उसके १०८ शिष्य थे। अनेक नवयौवना परिचारिकाएं थीं। सभी सामान्य वेशभूषा में थे। शाम्ब कापालिक लालरंग की धोती पहने हुए था। उसने श्याम वर्ण का उत्तरीय धारण कर रखा था। उसका शरीर प्रचंड और बलवान था । उसके शरीर का वर्ण ताम्र जैसा श्याम था । उसके गले में लाल माणिक्य की एक मूल्यवान् माला थी। उसकी विशाल केश - राशि भयंकर लग रही थी । सैकड़ों पशु ११५ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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