SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६. शाम्ब कापालिक सह-जीवन का पहला सप्ताह आनन्द, प्रमोद, कल्पना और मिलन के मधुर काव्य में बीत गया। स्थूलभद्र कोशा के नृत्य में खो जाता और कोशा स्थूलभद्र के वीणावादन में खो जाती। आठवां दिन उगा। पहला प्रहर अभी पूरा नहीं हुआ था। सम्राट् का संदेश लेकर रथपति सुकेतु कोशा के भवन में आया। चित्रा ने सुकेतु का स्वागत किया। उनके आगमन का संदेश रूपकोशा तक भेजा। कोशा रथपति के पास आकर बोली- 'भंते! आपका स्वागत करती हूं। सम्राट् की क्या आज्ञा है ?' सुकेतु ने रूपकोशा के लावण्यमय शरीर को एक क्षण तक अपलक देखा और बोला- 'देवी! कल प्रात:काल महामांत्रिक सिद्ध शाम्ब कापालिक ब्रह्मावर्त का प्रवास पूरा कर यहां आएंगे। राज्य की ओर से उनका भव्य स्वागत होगा। स्वागत में आपको आना है और कापालिक के सम्मान में आयोजित रात के कार्यक्रम में आपको नृत्य प्रस्तुत करना है।' 'मगधेश्वर की आज्ञा के अनुसार ही होगा।' चित्रा ने मैरेय का पात्र सुकेतु को दिया। सुकेतु ने कोशा के उभरते यौवन और छलकते रूप को आंखों से पीते हुए मैरेय को गले उतारा। सुकेतु वहां से चला गया। रूपकोशा को इस निमंत्रण से विशेष हर्ष नहीं हुआ। कल रात को प्रियतम का वियोग सहना पड़ेगा, यह वेदना उसकी आंखों में उभर आयी। उसने स्थूलभद्र के कक्ष में जाकर सारी बात कही। स्थूलभद्र ने पूछा- 'शाम्ब कापालिक कौन है ?' ११३ आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy