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स्थूलभद्र ने पूछा-'निर्दय कौन होता है, नर या नारी?'
'इसका उत्तर माला दे रही है। उसके भी वाणी है। आपके स्पर्श से माला के मोती भी गीत गाना चाहते हैं। वे एक-एक कर सब बिखर गए हैं।' कोशा ने स्वामी की पीड़न से टूटी हुई माला की अनोखी व्याख्या की।
भुजबंध शिथिल हुआ। कोशा छूटकर शय्या पर चली गई। कोशा का रत्नकंबल मुक्तहास हंस रहा था। ज्योत्स्ना विश्व को नहला रही थी। नीचे कोशा के वाद्यकार प्रथम मिलन का ही अभिनन्दन कर रहे
थे।
वातायन से हेमन्त का शीतल पवन बह रहा था और...
रूप यौवन से प्रतिस्पर्धा कर रहा था। यौवन प्रेम के इस प्रवाह में और अधिक पुष्ट हो रहा था।
आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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