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________________ माधवी दौड़ी-दौड़ी आकर बोली- 'देवी! कुमार स्थूलभद्र आए रूपकोशा ने सुना। उसका शोकाकुल चित्त कुछ आश्वस्त हुआ । प्रियजन का मिलन शोक को बंटा लेता है । हैं ।' स्थूलभद्र को सामने देख, कोशा उठी। उनका सत्कार किया । मातुश्री के अभिनिष्क्रमण की बात सुनकर स्थूलभद्र ने कहा - 'देवी ! यदि मुझे पहले ज्ञात होता तो मैं भी उनसे मिलने आता । अच्छा, आज उत्सव का दिन है। आज मैं मालकोश से तुम्हारा मन आनन्दित करना चाहता हूं। चलो नृत्यशाला में ।' रूपकोशा स्थूलभद्र के तेजस्वी नयनों की ओर देखती रही। उन नयनों में पवित्र प्रेम का उभार था, सहानुभूति की झलक थी । कोशा ने सोचा-स्थूलभद्र मेरे अपने कब बनेंगे ? स्थूलभद्र का वीणावादन, कोशा का मालकोश राग और दक्षक की मधुर बांसुरी । धीरे-धीरे वातावरण उल्लासमय बनने लगा। कोशा माता के वियोग की वेदना भूलकर राग में तन्मय हो गई। थोड़े समय पश्चात् स्थूलभद्र और कोशा मध्यखण्ड में आए। स्थूलभद्र ने कहा – ‘देवी ! आज मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं। आप आज की स्मृति में जो कुछ मांगना चाहो, मांग लो ।' कोशा ने कहा- 'पहले दूं, फिर मांगूं । मैं भी अपनी प्रसन्नता को स्थिर करना चाहती हूं।' 'मुझे मान्य है । ' के कोशा खड़ी हुई। स्वर्ण थाल में पड़ी फूलों की माला स्थूलभद्र गले में पहना दी और उनके चरणों में अपना मस्तक रखकर लज्जा भरे स्वरों में बोली- 'आर्यपुत्र ! आज से आप मेरे स्वामी हैं - मेरे एकाकी जीवन के अधीश्वर हैं.... साथी हैं ।' स्थूलभद्र ने चमककर कहा - 'ओह ! यह क्या ? देवी....?' १०६ Jain Education International आर्य स्थूलभद्र और कोशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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