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किन्तु अभी श्रीराग बाल्यकाल में थी। उसका यौवन कब उभरेगा, कौन जाने ? क्या दिन बीत जाएगा?
स्थूलभद्र ने राग को विराम दिया। मध्याह्न हो चुका था। सबके हृदय बोल उठे-धन्य साधना! सबके नयन इस अद्भुत कलाकार का अभिनन्दन करने लगे। स्थूलभद्र वहां से विदा हो गए। देवी सुनन्दा और कोशा उनको पहुंचाने गंगातट तक गईं।
नौका में बैठते हुए स्थूलभद्र ने कहा- 'देवी! आज आपने अतिथि के लिए बहुत श्रम किया है। इस आतिथ्य-सत्कार को कभी नहीं भूलूंगा।'
कोशा ने कहा-'आज का मिलन जीवन का प्रथम संस्मरण होगा।' नौका वहां से चल पड़ी।
जहां तक नौका दृष्टिगत होती रही, कोशा प्रियतम की नौका को देखती रही।
रात्रि का अंधकार घना होने लगा। कोशा अपने भवन की ओर मुड़ी।
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आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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