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'जो असभ्य और विकृत चित्तवृत्ति वाला होता है, उसकी कैसी परीक्षा! चले जाओ मेरे भवन से ! फिर कभी इस ओर मत आना!' कहकर कोशा ने सुदास के मुंह पर कटिमेखला फेंक दी।
सुदास का नशा उतर गया।
रूपकोशा तत्काल मध्यखंड से बाहर आ गई। सुदास को लगा कि यदि धरती फट जाए तो वह उसमें समा जाए। उसके मुंह पर कटिमेखला का आघात गहरा लगा था। उसने भूमि पर पड़ी कटिमेखला उठा ली। उसे लगा, कटिमेखला उसका उपहास कर रही है।
आर्यस्थूलभद्र और कोशा
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