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________________ १६. कटिमेखला नूतन वर्ष की पहली रात । कोशा का चित्रप्रासाद दीपमालिकाओं से जगमगा रहा था । राजसभा में आज रंगसभा का आयोजन हुआ था । राजा की आज्ञा से राजनर्तकी रूपकोशा सभा का मनोरंजन करने गई थी। आज मालव का राजकुमार भी एक प्रेक्षक रूप में उपस्थित था। नगर के अन्यान्य संभ्रान्त व्यक्ति भी उपस्थित थे। इनमें सेठ सुदास बहुत सजधजकर आया था। उसके गले का रत्नहार सबको आकर्षित कर रहा था। रात का दूसरा प्रहर बीता। रूपकोशा अपने रथ में बैठकर घर आ गई। उसने आज कामरूप के आचार्य द्वारा निर्दिष्ट नृत्य किया था। सब दर्शक उसके नृत्य से पराभूत थे। कोशा ने अपने वस्त्र बदले। वह अपने शयनकक्ष में गई। इतने में ही माधवी ने आकर कहा – 'देवी! आर्य सुदास आपसे मिलना चाहते हैं।' कोशा ने चित्रा की ओर देखते हुए कहा - 'चित्रा ! तू जाकर आर्य सुदास को विदाई दे। आज मेरे मध्याह्न को मालव के राजकुमार ने बिगाड़ा था.... और अब मेरी उत्तररात्रि नहीं बिगड़नी चाहिए।' माधवी बोली- 'किन्तु....' कोशा बोली- 'तू चित्रा के साथ जा । वह उसे समझा देगी।' चित्रा और माधवी दोनों बाहर आ गईं। शय्या पर पड़ी-पड़ी कोशा सोच रही थी - जब आर्य स्थूलभद्र आएंगे तब उनके साथ क्या-क्या बातें करनी हैं, उनके समक्ष कौन-सा नृत्य करना है, उनका आतिथ्य सत्कार कैसे करना है - यह सोचते-सोचते वह सो गई । आर्य स्थूलभद्र और कोशा Jain Education International - For Private & Personal Use Only ६८ www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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