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________________ आपको यथार्थ से अवगत करा देना चाहती हूं। कोशा एक नारी है, नगरनारी नहीं!' कहकर कोशा दरवाजे की ओर गई। राजकुमार भी पीछे-पीछे चल पड़ा। __ मध्यखंड में आकर कोशा ने राजकुमार के मित्रों से कहा-'आपके राजकुमार मेरे बिना एक पल भी जीवित नहीं रह सकते, यह बहुत ही दु:खद विषय है। किन्तु मेरी सहेली चित्रा आपको ऐसा स्थान बता देगी जहां आपके राजकुमार मेरे बिना भी जीवित रह सकेंगे।' फिर उसने चित्रा से कहा--'चित्रा! राजकुमार कोई सुन्दर नगरनारी की निकटता चाहते हैं। पाटलीपुत्र में उनकी बहुलता है। मालव राजकुमार हमारे अतिथि हैं। वे तेरा सहयोग चाहें तो तू वत्सक को इनके साथ भेज देना।' ... मालव राजकुमार आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने कहा- 'देवी! आपने मुझे यथार्थ में नहीं समझा। समझने में भूल की है।' 'नहीं, मैंने आपके मनोभाव को यथार्थ समझा है। यौवन और रूप नीलम के हारों से खरीदा जा सकता है, ऐसा आप स्वप्न में भी न मानें!' ऐसा कहकर कोशा चली गई। तीनों बाहर आए। एक मित्र ने कहा- 'महाराज ! ऐसी पराजय मैंने कभी नहीं देखी।' 'तू सच कहता है। किसी नवयौवना ने मेरा ऐसा तिरस्कार कभी नहीं किया। अभी हमें प्रस्थान करना है, अन्यथा मैं पराजय को विजय में बदल देता।' राजकुमार ने रोष से कहा। उनका रथ आगे बढ़ा। कोशा का विनोद मालव के राजकुमार के हृदय में तीर-सा चुभ रहा था। परन्तु वह करता भी तो क्या? नूतन वर्ष के मध्याह्न समय में ही राजकुमार को एक नवयौवना से अपमानित होना पड़ा। ६७ आर्यस्थूलभद्र और कोशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003105
Book TitleArya Sthulabhadra aur Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal C Dhami, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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