________________
उसको देखते ही तीनों मित्र आसन से उठे। एक ने हाथ जोड़कर कहा- 'देवी प्रसन्न हैं?'
'मालव राजकुमार का आतिथ्य स्वीकार कर मेरी प्रसन्नता शतगुणित हुई है।' कुछ क्षण मौन रहने के बाद कोशा ने फिर कहा- 'मैंने राजकुमार को एक बार देखा है।'
राजकुमार के मित्र ने कहा- 'अद्भुत है आपकी स्मरण-शक्ति। आपकी विजय को अभिनन्दित करने के लिए राजकुमार स्वयं उस दिन आए थे।'
कोशा ने कहा-'अच्छा, अब हम चलते हैं।' राजकुमार ने कहा- 'एक बात....' 'कहो, क्या है?' 'एकान्त में कहनी है।'
'अच्छा'-कहकर कोशा ने अपनी दासियों की ओर देखा। वे सब बाहर चली गईं। राजकुमार के दोनों मित्र भी बाहर चले गए।
राजकुमार ने कहा- 'देवी! अब मैं आपके बिना एक पल भी नहीं जी सकता...'
'किन्तु ऐसा होना असंभव है'-कोशा ने कहा।
राजकुमार ने एक पेटी निकाली और उसमें से नीलम का हार हाथ में लेकर कहा- 'देवी! यह मेरा प्रेमोपहार आप स्वीकार करें।'
'सहर्ष स्वीकार करती हूं'-कहकर कोशा ने वह हार अपने हाथ में लिया और एक ओर रख दिया।
दो क्षणों के मौन के पश्चात् कोशा उठी और बोली-- 'मैं आशा करती हूं कि आप अपने देश में जाकर भी इस पल को नहीं भूलेंगे।' ___'कभी नहीं भूलूंगा।'
'अच्छा,मैं भी आपको नहीं भूलूंगी। पाटलीपुत्र में नर्तकियों और नर-नारियों की संख्या विपुल है। उनके होते हुए भी आपने मेरे प्रति प्रेम दर्शाया, यह आश्चर्यकारक है। लगता है, आपको यथार्थ ज्ञात नहीं है। मैं
आर्य स्थूलभद्र और कोशा
६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org