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१५. अपमान
एक दिन....
मालिनी ने आकर कहा-'देवी!' 'क्या है?' 'मालव के राजकुमार आए हैं।'
'मध्याह्न के समय?' कोशा ने मुसकराते हुए कहा, 'उनको कह दो-मैं अभी उनसे नहीं मिल सकूँगी।'
'उनका अपमान होगा।' मालिनी ने संकोच करते हुए कहा।
'जो व्यक्ति समय का ध्यान नहीं रखता, उसको अपमान जैसा कुछ नहीं लगता।'
मालिनी चली गई। कुछ समय पश्चात् वह पुन: आयी। कोशा ने पूछा- 'क्या मालव राजकुमार चले गए ?' 'नहीं, वे आपसे मिले बिना नहीं जाएंगे।' 'अच्छा, उनके साथ और कोई है?' 'हां, उनके दो मित्र हैं।'
'मैं अभी आ रही हूं। उनको तू पानक दे।' कोशा ने चित्रा की ओर देखकर कहा- 'चित्रा ! जाना ही पड़ेगा। जा, मेरा हरित परिधान और तरुणी कटाक्ष-कामना के पुष्पों की माला ले आ।' मालिनी चली गई। चित्रा ने परिधान और माला उपस्थित की। हरित वस्त्रों के परिधान में रूप-छटा बिखेरती हुई तथा तरुणी कटाक्ष कामना के पुष्पों से यौवन को तरंगित करती हुई रूपकोशा अपनी दासियों के साथ मध्यखंड में आयी।
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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